कबीर दास जी के दोहे
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
अर्थ : कबीर
दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में
कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों
!
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साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि
परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजरा चल जाये , मैं खुद भी
अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ।मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
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काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥
अर्थ : कबीर दास जी समय की महत्ता
बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और और जो आज करना है उसे
अभी करो , कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम क्या कर पाओगे !!पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥
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लूट सके तो लूट ले,राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे,प्राण जाहि जब छूट ॥
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि
अभी राम नाम की लूट मची है , अभी तुम भगवान् का जितना नाम लेना चाहो ले लो
नहीं तो समय निकल जाने पर, अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब राम
भगवान् की पूजा क्यों नहीं की ।पाछे फिर पछ्ताओगे,प्राण जाहि जब छूट ॥
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माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ॥
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ॥
अर्थ : माँगना
मरने के बराबर है ,इसलिए किसी से भीख मत मांगो . सतगुरु कहते हैं कि
मांगने से मर जाना बेहतर है , अर्थात पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त
करो , उसे किसी से मांगो मत।
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